પ્રેરણા પરિમલ
બ્રહ્મસ્વરૂપ પ્રમુખસ્વામી મહારાજની પ્રેરક પ્રસંગ-સ્મૃતિઓ
તા. 3-7-2010, દિલ્હી
‘आपकी अदालत’ દ્વારા ઇન્ડિયા ટીવીને પ્રસિદ્ધિ અપાવનાર વિખ્યાત ટીવી-ચેનલના સૂત્રધાર રજત શર્મા દર્શને આવ્યા હતા. તેઓ ઇન્ડિયા ટી.વી.ના માલિક છે. અહીં એક વાર અનાયાસે જ અક્ષરધામનાં તેઓ દર્શને આવ્યા પછી ખૂબ જ અભિભૂત થયેલા છે.
સ્વામીશ્રીનાં દર્શન કર્યાં પછી તેઓ કહે : “बहुत समय से आपको मिलने की इच्छा थी। मैं पहले यहीं अक्षरधाम देखने के लिए आया था। बहुत अच्छा है, विशाल है और एज्युकेटीव है। हर आदमी को यहाँ आना चाहिए। हमारा कल्चर क्या है उनका पता सबको होना चाहिए।
यह मंदिर देख के मेरे बेटे ने मुझे कहा, ‘पापा'! मंदिर में इतना खर्च करने के अलावा होस्पिटल और स्कूल बनाई होती तो अच्छा नहीं था’ तब मैंने कहा, ‘अक्षरधाम जैसे मंदिर में आकर दश व्यक्तियों को भी होस्पिटल और स्कूल बनाने की प्रेरणा मिले तो भी इस मंदिर से काम हो गया समज। ऐसी इन्स्टिट्यूट होनी चाहिए जो लोगों को ऐसी प्रेरणा दे।’ यहाँ जो सफाई है वो हर जगह हर मंदिर में होनी चाहिए। मेरी यही शिकायत है कि बड़े बड़े कितने मंदिर हमारे देश में हैं, लेकिन स्वच्छता नहीं होती! अक्षरधाम यही जगह है कि यहाँ स्वच्छता होती है। यहाँ आने से वाकई में अंदर से स्पिरिच्युअल भावना निकलती है। आप ऐसा अभियान चलाइये कि देश के सब मंदिर की सफाई हो और देश के सब मंदिर की सफाई काम आप ही संभाल लीजिए।”
સ્વામીશ્રી કહે : ‘धार्मिक स्थानों से कुछ अच्छा करने के लिए हमें प्रेरणा मिलती है। मंदिर हो, शास्त्र हो या संत हो, उनसे ऐसी प्रेरणा मिलती है। जिसको प्रेरणा मिलती है वो देश के लिए और समाज के लिए प्रामाणिकता से अच्छा काम करेगा। नीतिनियम और प्रामाणिकता हो तो अच्छा काम होता ही है और नीतिनियम न हो तो लोग दूसरी प्रवृत्ति में लग जाते हैं। इसलिए इन सब की जरूरत है।’
રજત શર્મા કહે : ‘बड़ी डिग्री पाकर अपनी केरियर छोड़ के जो लोग यहाँ इस काम में लगे हुए हैं उनको देख के मुझे प्रेरणा मिली है। इन्डिया टीवी के माध्यम से आपका काम आगे बढ़ाने में कुछ भी कर सकूँ तो हमें बतलाइएगा।’
સ્વામીશ્રી તેઓની ભાવનાથી ખૂબ રાજી થયા અને તેઓને આશીર્વાદ આપ્યા.
Vachanamrut Gems
Gadhadã III-33:
Not Desiring Anything but the Service of God
“So what are the characteristics of such a devotee of God? Well, except for the service of God, if he does not wish for even the four types of liberation, how can he desire anything else? Such a person should be known as an ekãntik bhakta because he has no desire for anything. A person who is not like this, at times, enjoys engaging in the bhakti of God; but if he encounters evil company, he will forget bhakti and begin to behave immorally. Such a person should be known to be a fake devotee and a person who believes his self to be the body. He is not a true devotee and cannot be trusted.”
[Gadhadã III-33]