પ્રેરણા પરિમલ
બ્રહ્મસ્વરૂપ પ્રમુખસ્વામી મહારાજની પ્રેરક પ્રસંગ-સ્મૃતિઓ
તા. 8-7-2010, દિલ્હી
મધ્યપ્રદેશના મુખ્યમંત્રી શિવરાજસિંહ ચૌહાણ દર્શને આવ્યા. 52 વર્ષના તેઓ ખૂબ જ મુમુક્ષુ છે. સ્વામીશ્રીએ હાર પહેરાવીને તેઓનું સન્માન કર્યું. પછી તેઓ કહે : ‘मेरा सौभाग्य है कि आपके दर्शन हुए।’
સ્વામીશ્રી કહે : ‘वैसे तो आप बहुत व्यस्त हैं, लेकिन भगवान के दर्शन के लिए समय निकाला और यहाँ आये वो अच्छी बात है।’
શિવરાજસિંહ કહે : ‘मैं सदैव सन्मार्ग पे चलता रहूँ और मेरी बुद्धि भ्रष्ट न हो ऐसा आशीर्वाद भी दीजिए।’
સ્વામીશ્રી કહે : ‘भगवान ने बुद्धि दी है, और देश की सेवा ठीक से करते हैं, वह भगवान की कृपा है।’
શિવરાજસિંહ કહે : ‘कभी अहंकार पैदा न हो, ऐसा आशीर्वाद दीजिए।’
સ્વામીશ્રી કહે : ‘भगवान सर्व कर्ता हैं, ऐसा मानने से अहंकार नहीं आता है। जो कुछ करते हैं वो भगवान करते हैं।’
શિવરાજસિંહ કહે : ‘यहाँ आते वक्त मैं सोचता था कि आप जैसे महापुरुष के पास जा रहा हूँ तो कुछ मागना है। मेरी यही विनती है कि हंमेशा सद्बुद्धि बनी रहे, हंमेशा सन्मार्ग उपर चलता रहूँ और मेरे प्रदेश का विकास कर सकूँ, लोगों का भला कर सकूँ। क्योंकि आजकल लोकतंत्र में जो बुराइयाँ है, उससे चेतना आवश्यक है। लोग जब आते हैं तब सेवा के लिए आते हैं, लेकिन सेवा की वजह सत्ता में ध्यान केन्द्रित हो जाता है और सेवा पर स्वार्थ हावी हो जाता है, फिर घमंड पैदा हो जाता है कि प्रजा है वो मानो खेत की मूली है। जिसके लिए आया था वो काम भूल कर सत्ता के पीछे दौड़ने लगता है। मैं समझता हूँ कि समाज के लोगों का मन ठीक करने का काम आप जैसे महापुरुष ही कर सकते हैं, बाकी वोट की राजनीति में ये सब शक्य नहीं है।’
સ્વામીશ્રી કહે : ‘आपके विचार अच्छे हैं और भावना अच्छी है। आपकी इच्छा पूरी होगी। भगवान कर्ताहर्ता हैं, ऐसे मान के देश की सेवा करना। आप के उपर भगवान की कृपा है, तभी अच्छे विचार रहते हैं।’
શિવરાજસિંહ કહે : ‘मैं मध्यप्रदेश का कार्यभार संभाल रहा हूँ। आपको इस बारे में कुछ लगता हो तो बताइए, हमको राह दिखाइये।’
સ્વામીશ્રી કહે : ‘प्रामाणिकता से देश की सेवा होती रहे, भगवान की कृपा से बुद्धि अच्छी रहे ऐसी प्रार्थना, और संगठन मज़्ाबूत बनाइए।’
શિવરાજસિંહ અત્યંત મુમુક્ષુ છે. તેઓ રોજ ગીતાપાઠ કરે છે. નાનપણથી તેઓનું બેકગ્રાઉન્ડ આધ્યાત્મિક છે. ગીતાનો બારમો અધ્યાય ભક્તિયોગ તેઓને સૌથી વધારે પ્રિય છે. તેઓ ભક્તિયોગના ત્રણ-ચાર શ્લોક પણ મોઢે બોલ્યા. વળી, જિજ્ઞાસાથી કહે : ‘अक्षरधाम क्यों कहते हैं’
તેઓના આ પ્રશ્ન ઉપર આત્મસ્વરૂપ સ્વામી, વિવેકસાગર સ્વામી વગેરે સંતોએ અક્ષર અને પુરુષોત્તમનો મહિમા બતાવ્યો.
છેલ્લે તેઓ કહે : ‘आनंद की बात यह है कि ऐसे पढ़े-लिखे क्वोलिफाइड लोगों ने इस कार्य के लिए अपनी सारी जिंदगी लगाई है।’
સ્વામીશ્રીએ છેલ્લે તેઓને માળા આપી. તેઓની મુમુક્ષુતા નિહાળીને રાજી થયા અને ભગવાન સ્વામિનારાયણની પરાવાણીનો ગ્રંથ વચનામૃત પણ ભેટમાં આપ્યો.
Vachanamrut Gems
Gadhadã II-33:
God's Proximity
“If a person firmly observes the vow of non-lust, then he is never far from God…”
[Gadhadã II-33]